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Poetry Speaks Where Words Fall Short
Welcome to the heart of expression, where thoughts take rhythm and emotions find a voice.
This is a space for dreamers, storytellers, and souls who find solace in verses.
Whether you write to heal, to inspire, or simply to be heard, your words belong here.
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footnote
बिटिया तू तो फूल कुमारी,
इधर उछलती उधर मचलती।
मैं भी हंसती, तू भी हंसती,
पर तेरी ही हँसी है चंचल ॥
तुझको रोता गाता देखूँ,
आते देखूँ, जाते देखूँ ।
जब तू आँगन की हो कल कल,
जंगल में भी मुझको मंगल॥
मम्मी मैं भी हाथ बटाऊँ,
कहकर मेरा काम बढ़ाती ।
एक जोड़ती दस बिखराती,
इधर बनाती उधर मिटाती॥
गुड़िया तेरा हाथ लगे तो ,
विष भी बन जाए गंगा जल।
पैर उठे तो बजे पैंजनियां,
झूम उठे सब तारामंडल ॥
-----------©चित्रा शर्मा
मम्मी खेलो ना मेरे संग
मैं बैठी हूँ खेल सजाकर
पाँच मिनट दे सात मिनट दे
मैं आई तू खेल शुरू कर
मम्मी देखो मैं क्या करती
कैसे कैसे करतब करती,
हाँ हाँ ठीक है, बहुत ख़ूब है
बर्तन धोते धोते कहती॥
मम्मी ढूँढो कहाँ छुपी में
परदे के पीछे से कहती।
अरे कहाँ है कहाँ मैं ढूँढूँ,
कीबोर्ड की खटखट करती ॥
मम्मी देखो मैं क्या लाई
कूदती फाँदती बिटिया आई।
मीटिंग में हूँ दिखा नहीं क्या,
चलो हटो कमरे में जाओ।
मम्मी मुझको बाहर जाना
तुम भी मेरे साथ चलो ना ।
काम पड़ा है घर का सारा
टाईम मिला तो कल देखेंगे ॥
------------------ ©चित्रा शर्मा
बार बार मेरी स्मृतियों में समाता है
वह टूटा हुआ घर ।
अपनी गमगीन आँखों से मुझे बुलाता है
वह टूटा हुआ घर ।।
-मैं बहुत दूर आ चुकी हूँ
किसी और घर में समा चुकी हूँ ।
मेरे इन विगत भावों से
मुझे खोया हुआ बताता है
वह टूटा हुआ घर ।
जब कभी भी गुजरना होता है
उस घर के सामने से,
वह निहारता है मुझे,
गुजर जाना पड़ता है बडे ही अनमने से।
जिन्हें मैं भूलना चाहती हूँ,
उन्हें फिर से हरियाता है
वह टूटा हुआ घर ।।
-उसकी टूटी दीवारें
रह रह कर मुझे बताती है कि
तुम्हारी संवेदनाएँ मुझमें बसी हैं,
तुम्हारे ही कदमों से मेरी
ज़मीन में धंसी है ।
-हर होली दीवाली पर
तुमने मुझे सजाया है ।
अब क्यूँ देखकर मुझे
तुमने कहा पराया है ।
मुझे मेरे अतीत में डुबाता है
वह टूटा हुआ घर ।।
-मैं उसे समझाती हूँ
बस यही बताती हूँ,
क्यूँ ग़म है तुम्हें मेरे बिछुड़ जाने का,
भीड़ की इस दुनिया में
कोई कमी नहीं है ।
कितने ही तुम्हें अपना कहेंगे,
तुम्हारे लिए अपनों की कोई कमी नहीं है ।
ज़िद्दी बहुत है, नहीं तुम्हारे सिवाय
मेरा कोई नहीं है ।
मुझे यह महसूस कराता है
वह टूटा हुआ घर ।।
-अपने असहाय दोस्त को
अकेला ना छोडा करो।
समृद्धता मिल जाने पर
दोस्ती ना तोडा करो ।
मुझे दोस्ती का पैग़ाम याद दिलाता है ।
और अब मुझे मेरी बेवफ़ाई का
अंजाम याद दिलाता है
वह टूटा हुआ घर ।।
©Chitra Sharma ©चित्रा शर्मा
सुबह सुबह की बात,
हाथ में चाय का प्याला,
और वहीं फूलों का रंग
नैनों में भर डाला ।
पहला पहर पावन पवन,
सुंदर समय शीतल ।
गिल गिलहरी भागती
पेड़ों पे वो चंचल ।
लो उडी है और खड़ी भी
हरित लाली मर्मरी।
फूलों से बातें कर रही
सुंदर से ज़्यादा सुंदरी ।
पलक पसरे, साँस रोके
देखती हूँ मै अचल।
कोशिशें पूरी हैं तुझको
थामने की हे ओ पल ।
——————-©चित्रा शर्मा
आज दिवाली कल दीवाली
परसों गोधन मांडू है।
लड़ियाँ इतनी चमक रही है,
तारों जैसी दमक रही हैं ,
दीप जले हैं घर घर में ।
आज दिवाली कल दीवाली
परसों गोधन मांडू है।
खील बताशे मोल मंगाए,
हाथी घोड़े खाँड़ के खाए,
भर भर ढेर मिठाई है ।
आज दिवाली कल दीवाली
परसों गोधन मांडू है।
चार फिरकनी पाँच फुलझड़ी,
एक पटाखा तीन अनार,
और बच्चों का शोर है ।
आज दिवाली कल दीवाली
परसों गोधन मांडू है।
मम्मी दीपक जला रही हैं,
कोना कोना सजा रही हैं
खडिया गेरू घोल से ।
आज दिवाली कल दीवाली
परसों गोधन मांडू है।
दोनों हाथ मिठाई भरकर
गुड्डी कैसी फुदक रही है
अपनी नई फिराक में ।
आज दिवाली कल दीवाली
परसों गोधन मांडू है।
आस पड़ोसी रिश्तेदार
आते जाते शीश नबाते,
करते रामराम है ।
आज दिवाली कल दीवाली
परसों गोधन मांडू है।
------------------©चित्रा शर्मा
अंबर में उडा करते हैं अरमान ये सारे अपने
खुली आँखों में ही रह जाएँगे, खुली आँखों के ये सारे सपने ।
रोशनी हो या न हो हम तो चमक लेते हैं
चॉंद तारों को खिलौना सा समझ लेते हैं,
महकी होती है महक से ये इंद्रधनुषी दुनियां,
अनचीन्हे से इस मन को सरताज समझ लेते हैं ।
अंबर में उडा करते हैं अरमान ये सारे अपने
खुली आँखों में ही रह जाएँगे, खुली आँखों के ये सारे सपने ।
मंज़िलें यहाँ वहाँ कदमों में पड़ी रहती हैं,
महफ़िलें यदा कदा अपनों की सजी रहती हैं,
हर जाम मेरे नाम किया जाता है,
सारी दुनिया ही सदा अपनों से भरी रहती है ।
छोटी सी इन आँखों में समाया सागर,
टूटे ना ये सपना भर लेते हैं अपनी गागर,
नदिया सा आ सागर में ये विश्राम भी कर लेती हूँ,
हँसती रहती हूँ सदा मन को समंदर पाकर ।
अपनी मर्ज़ी है कि शामियाना सज़ा लेते हैं,
अपनी इस नाव को हम मौज में खे लेते हैं,
ज़िंदगी लोग लगा देते हैं जिसे पाने को
हम उसे हाथ बड़ा यूँ ही उठा लेते हैं ।
अंबर में उडा करते हैं अरमान ये सारे अपने
खुली आँखों में ही रह जाएँगे, खुली आँखों के ये सारे सपने ।
-----------------------------------©चित्रा शर्मा
हरियाली मंडित घरती को वो लालीमा चूम रही है,
सहमी सहमी सर्द हवा ये, इस आलम में घूम रही है ।
घन के घर है घने घमंडित, सतरंगो में झूम रहे हैं,
सभी चल पडे खग बंजारे, जो हर दम मासूम रहे हैं ।
घने दरक्खतों की छाया में, धीमा धीमा गान रहा है,
पत्तों का शीतल स्पंदन मादकता का पान रहा है ।
धरती अंबर के अंचल में शरमाता है ढलता सूरज,
उससे ही है मादक हाला, वह उससे अनजान रहा है ।
शाम गुजरती रफ्तां रफ्तां, वो मेरा मन देख रहा है,
इस अंधियारे मैं क्षत क्षत , जीवन मूल्यों को खोज रहा है ।
ढलते सूरज के मुंदन से, मन अश्कों में डूब रहा है,
खंडित खंडित है हर ज़र्रा, सोच रहा दिन खूब रहा है ।
यादों में हर तरफ़ उजाला, और जोश में चढ़त सूरज ,
दीन हीन असहाय खडे हम देख रहे थे ढलता सूरज ।
-------------------------©चित्रा शर्मा
मैंने देखा है लोगों को नफ़रत की झनकारों में,
घायल मन का विष देखा है नफ़रत की फनकारो में ।
बेचैनी का हल पाने की चिंता में बेचैन हुए,
काश कभी शायद की ख़ातिर सालों ये दिन रैन हुए,
इंतज़ार की राहों में बिछकर पत्थर ये नैन हुए,
तम के जाते जाते आंसू देखे चाँद सितारों में ।
मैंने लोगों को देखा है अश्कों भरे क़रारों में ।
रूठे यम को सदा मनाते लोगों को जीते देखा,
पल-पल के जीवन की ख़ातिर लोगों को मरते देखा ।
अपनों का तृष्णा के मद में सन बेगाना पन देखा,
तन्हाई को बढते देखा तम के बंदरवारों में ।
मैंने चाहत को देखा है घुटनों टेक प्रहारों में।
मेरी ही बातों में फँसकर मेरा साहिल जाल बना,
मैंने सबको अपने-अपने जालों में फँसते देखा,
दूजों की हर मजबूरी पर लोगों को हँसते देखा ,
क़ब्रों की आहों को देखा जश्नों भरे नज़ारों में ।
मैंने हर साहिल को भटके देखा मद के द्वारों में ।
-----------------------©चित्रा शर्मा
कुसुम बडे तुम खुशनसीब हो
हर दिल में बस जाते हो ।
पवन झकोरों में लहराकर
मधुमय जगत बनाते हो।
सावन की नन्ही बूँदों को
मोती सा चमकाते हो।
प्रेमी मन के विचलित दिल का
संदेशा पहुँचाते हो।
सुंदर मन की श्रद्धा हेतु
राहों में बिछ जाते हो ।
धरणी गर्वित है गोदी में
जीते और मर जाते हो ।
मेरे मन में अपने लिए
तुम रश्क भाव अपनाते हो ।
कुसुम बडे तुम खुशनसीब हो
हर दिल में बस जाते हो ।
-----------------------©चित्रा शर्मा
मन रे तू कुछ गा
बादल बहते जहां पागल हो
उस चोटी तक ले जा ।
मन रे तू कुछ गा।
रुनझुन रुनझुन पायल बाजे
बोले हाथों का कंगना ।
मस्त मोरनी सी में नाचूँ ,
आजा मेरे संग सजना ।
सारंग मेरा भी भूमी सा
तू श्रंगार करा ।
मन रे तू कुछ गा
डाल डाल हो पेड़ों की
मदमस्त पडी में झूलूँ ,
ठंडी ठंडी पुरवैया की
गुप-चुप बातें सुन लूँ ।
ओ कारे कजरारे बादल
आँखों में बस जा ।
मन रे तू कुछ गा
मैं हँसू तो लाखों फूल खिलें,
बोलूँ तो बुलबुल डोले
चलूँ हँसनी गश खा जाए,
हवा बसंती बोले ।
अरे भोर की प्यारी लाली
चेहरे पर था जा ।
मन रे तू कुछ गा
ऊँचे ऊँचे पेंग बढ़ाती
सात सहेली गाएँ,
सावन की बौछारें
तन मन को शीतल कर जाएँ।
मन के पंछी ,झूले को ले ,
अंबर में उड़ जा
मन रे तू कुछ गा ।
-----------------------©चित्रा शर्मा
दोस्त को दुश्मन को ,
गोरी को साजन को,
मुखड़े को चिलमन को,
नए साल की शुभकामनाएँ ।
डोली को कहार को,
फूलों की बहार को,
पायल की झंकार को
नए साल की शुभकामनाएँ ।
रेत के मैदान को,
खेतों की मुस्कान को,
नदियों के मयगान को
नए साल की शुभकामनाएँ ।
पेड़ों को पंछी को,
जीव को जंतू को,
जल को और जलचर को।
नए साल की शुभकामनाएँ ।
-------------------©चित्रा शर्मा
बडे नखरे में आई बड़ी दीदी ।
छोटी छोटी बेटी मेरी, रोटी खाए,
छोटी छोटी बेटी मेरी, रोटी खाए,
पीज़ा मंगाए बड़ी दीदी ।
बडे नखरे में आई बड़ी दीदी ।
छोटी छोटी बेटी आम, गुठली से खाए,
छोटी छोटी बेटी आम, गुठली से खाए,
पीसिज़ करवाए बड़ी दीदी ।
बड़े नखरे में आयी बड़ी दीदी ।
` -----------------©चित्रा शर्मा
वह शहतूत का पेड़ क्या अभी खडा हुआ है?
अरे कहाँ उसे तो कबका गिरा दिया ।
-दो चबूतरे चौखट के क्या वैसे ही दिखते हैं?
नहीं नहीं उनको अब नये घरों में मिला दिया ।
-अच्छा तो फिर क्या पूछूँ मैं तरूवर नीम, बकांद की!
हाँ चितरा उनको तो पहले ही ढहा दिया था ।
-जो छान और छप्पर चौका-चूल्हे पडे हुए थे,
सब समतल कर दो घर का नक़्शा गढ़ा दिया था ।
-तू आएगी तो कभी देखना कैसे सबकुछ बदल गया है,
बस बूढ़ी माँ नहीं छोड़ती एक एक कर सब चले गए हैं ।
——---------------------------©चित्रा शर्मा
Poem
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